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जन लोकपाल के लिए अन्ना हजारे के आन्दोलन से मुस्लिम समाज से दूर रहने की अपील करने वाले जामा मस्जिद के शाही इमाम अहमद बुखारी मानसिक रोगी हैं भ्रस्टाचार विरोधी लड़ाई में उनका यह बयान राजनीती में मुस्लिम नेता के रूप में अपने पहचान बनाने का कुंठित मानसिकता से दिया गया बयान है मुस्लिम समाज उसका संज्ञान नहीं ले रहा है अहमद बुखारी स्वयं भ्रष्ट हैं दिल्ली की जामा मस्जिद आज तक वक्फ बोर्ड में दर्ज नहीं कराई मस्जिद की आमदनी निजी उपयोग में ला रहे हैं वह पार्टियों से पैसा ले कर चुनाव में प्रचार करते हैं फतवा देते हैं जब कि उनको या उनके मरहूम पिता को फतवा देने का कोई अधिकार नहीं था क्योकि यह दोनों मुफ्ती नहीं हैं इस्लामी शरियत में मुफ्ती को फ़तवा देने का अधिकार है अन्ना का आन्दोलन उचित है किन्तु देश के तथा कथित भद्र , कुलीन ,अभिजनों का ये आन्दोलन है क्योकि केंद्र कि सत्ता में अपनी पकड़ के लिए यह वर्ग इसाई समुदाय के वर्चस्व से दुखी हो कर अपने वर्चस्व के लिए भ्रस्टाचार विरोधी लड़ाई को आजादी कि दूसरी लड़ाई निरुपित करना अनुचित है अन्ना के आन्दोलन से बड़ा और बहुआयामी आन्दोलन लोक नायक जय प्रकाश नारायण का था जिसमे समाज के सभी वर्गों की भागीदारी थी आजादी के इतिहास में मंगल पाण्डे वीर सावरकर चन्द्र शेखर आजाद का नाम तो स्वर्ण अछरों में लिखा गया पंडित नेहरु के परिवार के हवाले देश कर दिया गया किन्तु इतिहास में अंग्रेजों के विरुद्ध आजादी का पहला शंख नाद करने वाले आदिवासी विरसा मुंडा पिछड़े वर्ग के वीर लोरिक को कोई स्थान नहीं मिला यही हालत अन्ना की कोर कमेटी की है जिसमे दलित पिछड़े और मुस्लिम वर्ग की कोई भागीदारी नहीं है ऐसा करके तमाम अच्छाइयों के बाद भी 85% समाज को अन्ना ने अपने से दूर क्यों रक्खा ???
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